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जुलाई 07, 2019

Kabir Singh- कबीर सिंह फिल्म की समीक्षा

ये एक आदमी के पागलपन की कहानी है. कबीर सिंह का पागलपन घिनौना है. और फ़िल्म उसी घिनौने शख़्स को हीरो बना देती है. और हाँ, यह एक दक्षिण भारतीय फिल्म संस्करण है।
वो आदमी जिसे जब अपना प्यार नहीं मिलता तो वो किसी भी राह चलती लड़की से बिना जान पहचान शारीरिक संबंध बनाना चाहता है.
यहां तक कि एक लड़की मना करे तो चाक़ू की नोक पर उससे कपड़े उतारने को कहता है.
वो इससे पहले अपनी प्रेमिका से साढ़े चार सौ बार सेक्स कर चुका है और अब जब वो नहीं है तो अपनी गर्मी को शांत करने के लिए सरेआम अपनी पतलून में बर्फ़ डालता है.
और मर्दानगी की इस नुमाइश पर सिनेमा हॉल में हंसी-ठिठोली होती है.
तेलुगू फ़िल्म 'अर्जुन रेड्डी' पर आधारित ये फ़िल्म उस प्रेमी की कहानी है जिसकी प्रेमिका का परिवार उनके रिश्ते के ख़िलाफ़ है और प्रेमिका की शादी ज़बरदस्ती किसी और लड़के से करा देता है.

जंगली विलाप

इसके बाद प्रेमी कबीर सिंह का विलाप जंगलीपन की शक्ल ले लेता है. क्योंकि वो किरदार शुरू से ही औरत को अपनी जागीर मानने वाला और 'वो मेरी नहीं तो किसी और की भी नहीं होगी' वाली मानसिकता वाला है.
प्रेमिका हर व़क्त शलवार क़मीज़ और दुपट्टा लिए रहती है पर वो उसे गला ढकने को कहता है.


वो 'उसकी' है ये साफ़ करने के लिए पूरे कॉलेज को धमकाता है. होली के त्यौहार पर सबसे पहले वो ही उसे रंग लगाए इसके लिए लंबा-चौड़ा इंतज़ाम करता है.
उसे ये तक कहता है कि उसका कोई वजूद नहीं और "कॉलेज में लोग उसे सिर्फ़ इसलिए जानते हैं क्योंकि वो कबीर सिंह की बंदी है".
खुले तौर पर शराब पीने, सिगरेट का धुंआ उड़ाने और दिल्ली जैसे 'अनऑर्थोडोक्स' यानी खुले विचारों वाले शहर में शादी से पहले आम तौर पर सेक्स करने का माहौल, ये सब छलावा है.
इस फ़िल्म का हीरो अपनी प्रेमिका को हर तरीक़े से अपने बस में करना चाहता है और पसंद की बात ना होने पर ग़ुस्सैल स्वभाव की आड़ में जंगलीपन पर उतर आता है.

दबंग

उसके पिता से बद्तमीज़ी करता है, अपने दोस्तों और उनके काम को नीचा दिखाता है, अपने कॉलेज के डीन का अपमान करता है, अपनी दादी पर चिल्लाता है और अपने घर में काम करनेवाली बाई के एक कांच का गिलास ग़लती से तोड़ देने पर उसे चार मंज़िलों की सीड़ियों पर दौड़ाता है.
दरअसल कबीर सिंह सभ्य समाज का दबंग है. बिना लाग-लपेट कहें, तो ये किरदार एक गुंडा है.
उस प्रेमिका की ज़िंदगी, उसका अकेलापन, इसकी कोई चर्चा ना हो. और आख़िरी सीन में वो अचानक कबीर सिंह को हर बात के लिए माफ़ कर दे और वो हीरो बन जाए.
प्यार जैसे ख़ूबसूरत रिश्ते जिसमें हिंसा को किसी भी पैमाने से सही नहीं ठहराया जा सकता और जिसमें बराबरी और आत्म सम्मान की लड़ाई औरतें दशकों से लड़ रही हैं, उसके बारे में सोच कैसे खुलेगी?

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